Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दर्द की दवा

 

अक्सर ही ऐसा होता है
जब दिल भीतर ही रोता है
दर्द दिल का यूं सहन नहीं होता
कुछ भी करने को मन नहीं होता
जख्म जो नासूर बन गए हैं
आँसूओं से बिस्तर सन गए हैं
अरमान कुचल गए हैं
एहसास जल गए हैं
सब साथी छल गए हैं
खुशियों के पल गए हैं
दर्देसैलाब मे खो गया हूँ मैं
क्या था क्या हो गया हूँ मैं
ऐसे मे क्या करेगा ये दिल
जीना हो जाएगा मुश्किल
दर्द बांटने ही से कम होगा
मुश्किल सहना ये गम होगा
जब कोई दिल मिलेगा ऐसा
गम जिसका हो मेरे जैसा
दर्दमिल के यूं कम होगा
रिश्ता जब मै से हम होगा
ढूँढता हूँ ऐसा कोई मिल जाये
जिसको दे दिया ये दिल जाये
मेरे जख्मो को जो सिल जाये
ले के खुशियों की मंजिल आए

 

 

 

अमरनाथमूर्ती

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