हमारे नेता भाग्य विधाता क्या चीज है कमाल
तरबूज से सूजे गाल और उस पर खिजाब मे रंगे चंद खिचडी से बाल
चेहरे के भाव और मन के बहाव मे ना कोई है मेल ना कोई है ताल
कौन से दल मे है ये ना पूछो पार्टी “ क “ मे है फिलहाल
ना ठीक है उनका चलन ना ठीक है उनकी चाल
पर हर कदम पर चल देता है कोई अप्रत्याशित चाल
किस नस्ल का जीव है ये सोच सोच कर बनाने वाले का भी है बुरा हाल
शायद ये भिन्न भिन्न नस्ल के ही हैँ कोई नटवरलाल
शब्दकोष सीमित है लेकिन हमेशा बुनता रहता है शब्दोँ के जाल
मंत्री पद की कुर्सी देख कर टपकती रहती इनकी राल
शुरु मे होँ ये कितने भी फटेहाल कितने भी कंगाल
देर नही लगती उनको झटपट होने मे मालामाल
चंद महीने या अधिकतम लगता एक साल
इनकी हरकतोँ पर टिप्पणी करूँ ऐसी क्या है मेरी मजाल
बेटे का नही बाप का नही ना ही ये हुआ अपनी माँ का लाल
माँ भी कुर्सी , बाप भी कुर्सी कुर्सी ही इनका नंद लाल
जीवन के रंगमंच पर होता इनका अभिनय बडा कमाल
चुनाव के दिनो मे इन बरसाती मेँढकोँ का ना पूछो हाल
टर टर करते सबको रिझाते, थकते नही ना होते निढाल
फिर दर्शन देने को इन्हे लगते पूरे पांच ही साल
इनकी जीवनचर्या पर तुम कभी ना पूछो कोई सवाल
पूत के पाँव पालने मे दिखते पैदा होते करे धमाल
पाठशाला मे पढने जाये इसका उठता नही सवाल
गर जाये तो एक क्लास मे लगते इनको सालमसाल
चंद दिनो मे ही करे शुरु ये तोडफोड और हडताल
मारपीट कर खुद जाते कुछ और को भेजते ये अस्पताल
कुछ की हड्डी पसली तोडेँ कुछ की खीच देते ये खाल
इसी तरह परवान चढ जाती इनकी ट्रेनिंग यूँ हर साल
बहुत काम आती यह ट्रेनिंग विधान सभा हो या संसद का हाल
कुर्सी ना मिलने पर ये कर देते खडा नया कोई भी बवाल
जनताकी समस्याओँ पर करते ये सदैव ही बस टालमटाल
जेबेँ भरते कभी ना डरते भाड मे जाये देश का माल
इनके भीतर कभी ना देखा जमीर के तिनके का एक बाल
गरीब ठंड मे मर खप जायेँ इनको नही है कोई मलाल
कार मे बैठेँ ठाठ से लेटेँ ओढ के ये कश्मीरी शाल
झांक के देखेँ फुटपाथ पर बिखरे पडे चिथडोँ मे लाल
जो खून पसीना एक करे तो बनता इनका बँगला विशाल
जनता को तो कभी ना पालेँ गुंडे बहुत ये लेते पाल
ललकारे कोई तो समझो आया उसका अंतिम काल
बीसियोँ केस दर्ज होते हैँ पास के थाने मे हर साल
गवाही दे सके ऐसा कोई नही है अपनी माँ का लाल
इनके पाप के दाग पोँछने पुलिस ही देती अपना रुमाल
कानून बनाना काम पर इनको तोडने मे भी हासिल है कमाल
लूट खसोट रेप एक्स्टोर्शन मे इनकी नही है कोई मिसाल
कभी ना फँसते किसी केस मे कितने भी तुम फेँको जाल
स्विस बैंक मे पैसा बढता जैसे खुली कोई टकसाल
सम्पत्ति का गर ब्योरा माँगो तो गुस्से से हो मुह लाल
सोफे तकियो और गमलोँ मे कितना भी मिल जाये माल
बाईज्जत “सुखराम” बचे चलकर कोई कानूनी चाल
धौंस मे क्या क्या बहादुरी दिखायेँ इनके होनहार लाल
खुले आम गोली है चलाई मर गयी बेचारी जेसिकालाल
शाम का वक्त भीड से भरा था खचाखच वो बार का हाल
गवाही दे कर साफ कह सके अपनी आंखोँ देखा हाल
ऐसी हिम्मत उनसे दुश्मनी कैसे ले कोई माई का लाल
कानून जिनके पैरोँ की जूती जिससे खेलेँ ये फुटबाल
खून करे तंदूर मे डाले कितनी ओरिजिनल ये चाल
दुर्भाग्य से बात खुल गयी करनी पडी जांच पडताल
हमने सोचा अब तो लगा गयी मुजरिम को पूरे चौदह साल
ऐसा कुछ भी नही हुआ बच गया शातिर नटवरलाल
फाईल मोटी होती चली गयी कानून चले कछुए की चाल
बीस साल बाद इंसाफ हुआ और जेल मही कटेगे बाक़ी साल
सत्ता की तो भूख मिट गयी हाथ जो आई पॉवर की थाल
पर ये भूख साथ ले आयी एय्याशी के नये ख्याल
अमरमणि के सिर पर चढकर ये ले आयी विनाश का काल
मधुमिता से नाता जोडा लोकलाज का किसे ख्याल
मधुमिता हो गयी गर्भिता नही सकी खुद को यूँ सँभाल
मधुमिता के मन मे फूटी मातृत्व की नयी पुआल.
गर्भपात करवाने हेतु उसने किया यूँ टालमटाल
अमरमणि को भविष्य की चिंता भाड मे जाये मा का लाल
जान से हाथ धो बैठी वो बेचारी चैनलोँ को मिला था काफी माल
जो होते हैँ माहिर इतने निकाल के लाते बाल की खाल
ऐसी घटनाओँ से ही चलती इनकी मक्खन रोटी दाल
चिता मे सेँकेँ रोटी ये तो इनको क्योँ कर होगा मलाल
जी भर कर “टीआरपी ” बटोँरी सरेआम इज्जत को उछाल
( पिछला माया राज)
राजा का था अपना ताल जिसमे निकला नरकँकाल
माया ने जो फैँका जाल हाल हुआ उसका बेहाल
जहर ही जहर को काटता इसकी कितनी अच्छी बनी मिसाल
समय ने ली करवट और फेल हुई माया की चाल
ताज ले गया ताज यूँ सिर का टूट गया ये मायाजाल
और मुलायम ने आ कर के तोड दिया पोटा का जाल
अब तो ताल मे फिर से मिलेँगे नित नये नये कँकाल
देश बनेगा मरघट जब तक रहेँगे ये सत्ता के दलाल
वक्त ने ली अँगडाई और फिर से आ धमका माया का काल
सारे मायावी केस बंद हुए नये सिरे से बुने गये जाल
जिसमे फंस गये बुरी तरह से अमर मुलायम और शिवपाल
माया का तो एक ही मकसद इनका जीना करे बेहाल
अमर की कितनी अच्छी किस्मत केंद्रमे आया एक भूचाल
परमाणु संधि पर लेफ्ट ने खडा किया एक नया बवाल
“आई सी यू “ मे थी यू पी ए समझो आया अंतिम काल
अमरसिंग ले वक्त पर पहुंचे चालीस एम्पीओँ की संजीवनी थाल
कल के दुश्मन दोस्त बन गये समय रहते सब लिया सँभाल
अवसरवादी राजनीति की यही तो है एक ज्वलंत मिसाल
बाहर हो गये मुलायम और एक बार फिर आया माया का राज
पांच साल यूँ ही बीत गये और डूब गया बीएसपी का जहाज
एसपी पॉवर मे जो आयी अखिलेश को मिला यूपी का ताज
यूँ ही जनता पिसती रहेगी चाहे जिसका भी हो यहाँ पे राज
ऋष्ट्पुष्ट तंदुरुस्त बदन है नही है कोई काम या काज
खाये पिये मौज मनाये यही इनकी सेहत का राज
छीँक भी आये तो करायेँ विदेश मे जाकर के ये इलाज
देश के धन को यूँ ये लुटायेँ इनको कभी ना आयी लाज
इनकी मंजिल इनका मकसद इनके सिर पर हो एक ताज
उगते सूरज को देखकर बदल जाये इनका भी मिजाज
अपराध के आते हैँ इनको ना जाने कैसे कैसे नये अंदाज
कभी करेँ हवाल कांड तो कभी बने ये कबूतरबाज
इनके स्वार्थ मे बिक जाते हैँ क्या हुकुमत क्या ही समाज
अपनी हरकतोँ से फिर भी ये कभी ना आयेँ यूँ बाज
जिनसे है खतरा समाज को उनकी सुरक्षा पर उठे सवाल
कितनीगाडियां आगे पीछे हैँ बनता ये स्टेटस सिम्बाल
पुलिस लगी गुण्डोको बचाने सच मे आया कलयुग काल
क्या सभ्य समाज की यही परिभाषा पूछे विक्रम से वेताल
एक बार कुर्सी जो मिलती ऐसे चिपकते लल्लूलाल
कुर्सी पर यूँ लगी हो जैसे अच्छी सी कोई फेविकाल
नशा ये कुर्सी का कुछ ऐसा जैसे कोई मायावी जाल
कुछ भी हो ये नही छोडते जब तक पूरा ना हो कार्यकाल
काल वो था जब होते थे शास्त्री बहादुर जैसे लाल
फिर भजन की बंसी बजाते रहे ठाठ से अपने देवी लाल
लगे हुए हैँ सदैव से ये तो देश की पगडी रहे उछाल
बदे शर्म की बात है हम इनको ही चुनते हैँ हर साल
सवासौ करोड की भीड मे हमको मिला नही कुछ खालिस माल
कब तक यूँ ही चलते रहेंगे हम घिसी पिटी ये भेड चाल
ये है बडी गम्भीर समस्या समय रहते खुद को लेँ सम्भाल
वरना पतन की राह मे चलकर वतन पहुंच जाये पाताल
नेताओँकोतानेदेनेवालामैहोताहूँकौन?
मैंनेहीतोचुनाहैसोचकरहोजाताहूँमौन
अमरनाथ मूर्ती
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY