Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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क्या खोया कुछ भी नहीं?

 

 

सिर्फ दोस्तों की दोस्ती अपनो का अपनापन
मन की मासूमियत प्यारा सा बचपन
वो बारिश मे भीगनाबाद मे वो छींकना
वो अम्मा की डांट वो रस्सी की खाट
वो हल्दी वाला दूध जो होता था शुध्द
मक्के की रोटी साग आँगन मे भागमभाग
वो मास्टर की बेंत वो लहलहाते खेत
वो रेट के घरौंदे तालाब किनारे पौधे
वो चिड़ियों की चहकवो मिट्टी की महक
वो भैंसों का तबेला वो गोधुली की बेला
वो पूनम का मेला उसमे रेलमपेला
कठपुतलियों का खेला वो रस्सी का झूला
वो गुल्ली वो डंडा वो गोला ठंडा ठंडा
वो चिल्लपों मचाना वो थक के सो जाना
वो पेड़ों पे चढ़ना और माली को चिढ़ाना
डाली पे लटकना झूल के लपकना
कच्चे अमरूद तोड़ना फिर माली का दौड़ना
और घर पर शिकायत उस पर आयी शामत
बाबूजी की पिटाई फिर बाद मे मिठाई
वो गाँव की पगडंडी बयार ठंडी ठंडी
मिट्टी से सने पैर वो खट्टे मीठे बेर
वो खेत की मुंडेर वो अनाज का ढेर
वो गोबर का लेप वो गन्ने की खेप
वो बैल वो खपरैल वो लुकाछिपी का खेल
वो लकड़ी की गुलेल वो चमेली का तेल
वो पीपल की छांव कौए की कांव कांव
वो कागज की नाव वो प्यारा सा गाँव
वो मस्ती भारी होलीदीवाली की रंगोली
वो खट्टी मीठी गोली वो हंसी वो ठिठोली

 

छुटपन की ज़िंदादिली थी भले ही जेब खाली
वो अभावों मे बीता कल न लौटने वाले सुनहरे पल

 

ये हम सब ने क्या किया
कल की तलाश मे
जीना भूल गए आज मे
अब भी समय है
जो खुशियाँ हम बाहर ढूंढ रहे हैं
अपने अंदर ही टटोलें
मन की
वो शांति
वो संतोष
वो सुख
वो सुकून
कहीं न कहीं भीतर ही जरूर पाएंगे

 


***
अमरनाथ मूर्ती

 

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