Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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क्या पाया कुछ भी तो नहीं?

 

 

नहीं! बहुत कुछ पाया है

 

अतृप्त अरमानो की इक आग
जमीर पर ढेर सारे दाग
मन को डसता सा एक नाग
कर्ण को अप्रिय सा एक राग
आशाओं का धूमिल होता चिराग
उजड़ा हुआ सा एक बाग
करवटों भरी रात भर की जाग
बलि को तैयार एक छाग

 

लोगों के साथ मनमुटाव
अपनों ही के साथ दुराव
आत्मा पर अनगिनत घाव
छालों से भरा फटा पाँव
अपवित्र कुत्सित हावभाव
एक चिड़चिड़ा सा स्वभाव
मँझधार मे डूबती सी इक नाव

 

जमाने भर के ताने कटाक्षों के ताने बाने
दुश्मनों की कुढ़न साथियों की जलन
लोगों की बददुआएंगरीबों की हाय

 

माथे पर शिकन शरीर मे टूटन
पेट मे अल्सर बीपी और शुगर
नजदीक का चश्मा घुटन भरा एक समा
चेहरे पर झुर्रियां बदन की कमज़ोरियाँ
दवाओं की एक पोटली हंसी एक खोखली
बालों मे खिजाब चिड़चिड़ा सा मिजाज
वो नींद की बीमारी वो जागना रात सारी
वो कचोटती आत्मा हंसी का खात्मा
एक बेचैनी भरा खालीपनएक बोझ सा लगता जीवन

 

 

 

अमरनाथ मूर्ती

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