Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नए दोहे नयी सीख

 

 

रहिमन देख बडेंन को लघु ना दीजिये डारि
जहां काम आवे सुई का करे तरवारि

 

रहिमन देख बडेंन को छोटे को दुत्कारी
संतरी नहीं मंत्री से बनते काम सरकारी

 

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर

 

सडा हुआ तो क्या हुआ जैसे फल अंगूर
दो घूँट जो पीओगे आयेगा बड़ा सुरूर



दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करे ना कोय
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होय

 

दुःख में सुमिरन जब करे कोई ना देगा साथ
सुखी देखकर के तुम्हें बढेंगें सौ सौ हाथ हाथ

 

बढ़ेंगे सौ सौ हाथ साथ में होगी पूरी बरात
दिन को कहो जो तुम रात सारे मानेंगे तुम्हारी बात
सारे मानेंगे तुम्हारी बात चापलूसी की होगी बरसात
दुधारू गाय के जैसे ही सहर्ष खायेंगे तुम्हारी लात
मन में कितना भी हो मैल करेंगे मीठी मीठी बात
तुम्हारे घटिया से जोक पर भी हंस के दिखाएँ अपने दांत
चाहे हो कोई भी तुम्हारी जात तुमको मानेंगे जगन्नाथ
खुल कर जब बांटोगे खैरात हाथ में लेके भरी परात
आगे पीछे मंडराएँगे वो चाहे दिन हो या हो रात
तुम जब हो जाओगे खाली हाथ छोड देंगे ये तुम्हारा साथ
काई की तरह छट जाएँगे ये सुख के जाने के ही पश्चात
तरस जाओगे तुम उनसे करने को एक छोटी सी मुलाक़ात
बिगड़ जाएँगे तेरे हालात तार तार होंगे सब जज़्बात

 

दुःख में सुमिरन जब करे कोई ना देगा साथ
सुखी देखकर के तुम्हें बढेंगें सौ सौ हाथ हाथ

 

 


***
अमरनाथ मूर्ती

 

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