Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तेरी खातिर

 

 

तू गुजरे जिस गली से
सजा दूँ उसे कली से
रख दे तू कदम जहां
सजदे मे सर झुका दूँ

 

 

जिन राहो पर चले तू
पड़े जहां निशान तेरे
उन राहों पे कदम मै
रखने न दूँ किसी को

 

 

साया जहां पड़ जाय
वो जगह तीर्थ कहलाए
कुछ पल जहां तू ठहरे
मंदिर वहाँ बना दूँ

 

 

जो फूल तुझको भाए
उसे गजरे मे सजा दूँ
गम सारे जो भुला दे
वही साज मै बजा दूँ

 

 

गर तेरी आरजू हो
कलियाँ सजीं हरसू हो
कायनात को मै सारी
बहारे चमन बना दूँ

 

 

अमरनाथ मूर्ती

 

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