Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दो चाँद !

 

जब आसमाँ का चाँद छत पे आता है ..
मेरा चाँद मुझसे हो दूर जाता है ..
उसको समझाता या फिर इसको मनाता !

 

कल रात जब वो आसमां में समाया था ..
मेरा चाँद मेरी बाहोँ मे आया था ..
रोशन कर मुझे अपने चेहरे के नूर से,
जहाँ से मुझे जुल्फों तले छुपाया था ..

 

क्या बताऊँ उसपे कितना प्यार आता है ..
मेरा रोम रोम उसमे डूब जाता है ..
काश ये पल यूँ ही ठहर जाता !

 

फिर जब आसमां से चाँद निकल आया ..
मेरा चाँद उसको देखकर शरमाया ..
करवट बदल ली उसने जब मुझे छोड़कर,
वो महबूब किसी और का है, मैंने समझाया ..

 

बोला, तो फिर वो क्यूँ तुम्हारे पास आता है ..
मैंने कहा, यूँ तो वो सबके पास जाता है ..
मैं भला कैसे उसको रोक पाता !

 

आसमां से की गुज़ारिश उसको छुपाने की ..
उससे भी की सिफ़ारिश कुछ दूर जाने की ..
माना नहीं वो अपनी ज़िद पे अड़ा रहा,
लाख कोशिशें की उसको समझाने की ..

 

कहा, क्यूँ तू ना जहाँ के पास जाता है ..
बोला, तू भी तो उस जहाँ में आता है ..
अब मैं उसको आख़िर क्या बताता !

 

 

-अम्बरीश कुमार श्रीवास्तव

 

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