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पिलाये थे तूने अपने प्राण ....
जब तक मैं ले न सकता था
जग की स्वार्थपर सांसे
वो प्राण श्रोत आज भी अंकित है मेरे तन पर ,
सदा रहेगा
जब तक ये साँसे है,
मेरा अस्तित्व है ।
याद है मुझे !
आँगन में नहलाते
वो मखमली हाथ ,
वो गोल निवाला
एक दम गोल.....
कोई सूरज होता ,
कोई चंदा,
कुछ तारे
सबको समेटती
इस छोटे से पेट में
और फिर अपने सबसे सुंदर
सबसे बहादुर बेटा को
दिए .....तेरे वे चुम्बन
आज भी मेरे माथे को नम करते है .....
आज भी बाह फ़ैलाये
तेरी गोद में चढ,
तुझसे लिपट कर
रोने का जी करता है ....
मालूम है मुझे तेरे फूको का जादू
जो मेरे
सारे मर्ज को भर देगा ..
जब कभी दौड़ भाग से थक कर
बसों - ट्रेनों में बैठ
मीठी झपकिया लेता हु ..
वो हाथ आज भी अपने आँचल से ....
मेरे पसीनो को पोछता है .....
और एक नन्हा बच्चा आज भी शोर
मचाता है .....माँ .....माँ ...वो...माँ...
मै बहुत थक गया हुँ.....
-- अम्बुज सिंह
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