Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं - तब और अब

 

जब मैं भोला था,ईमानदार था ,
सच्चाई का था मेरा पथ ,
तब तुमने नकारी थी मेरी सफलता ,
मेरी प्रवीणता .....मेरा समर्पण ।।
अब मैं सामाजिक हुँ ,
सीख ली है मैंने चटुकारिता ,गढ़ा लिया है
खुद को नफ़रतो से,
सो अब मै शातिर हुँ ,और खतरनाक भी ।।
अब तुम डरते हो......
मेरी चेतावनियों से ,
और चुनते हो मेरी अक्षमताओं पर मुझे विजेता ...
मुझे मालूम है ,
तुम्हे इंसानो की जरा भी परख नहीं ,
तुम्हे नहीं पता है ,आत्मा की पवित्रता।
पर मैं परचित हुँ ,तुम्हारे हुनर से ,
जो झट से पहचान लेता है स्वार्थ ,
और नकार देता है तेजस्विता ।
तब मेरी गलतियों में ,मेरी नादानिया थी ...
अब मेरी नादानियो में छिपी है
गहरी साजिशें ,
जिससे मैं बुन रहा हुँ तुम्हारे जिल्ल़त के फंदे..
तब मैं कायर था ......डरता था !अपनी ही चीखों से ,
अब मैं शांत होकर सुन रहा हुँ
तुम्हारे चीत्कारो के मधुर गीत ..
क्यों की तब मुझमे इंसानियत थी ,
और अब मैं इंसान नहीं रहा ..
अब मैं इंसान नहीं रहा !!!

 

 

---- अम्बुज सिंह

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