महज 22 साल में आईएस टाॅपर और हिन्दी माध्यम से महज 5 प्रतिशत अभ्यर्थियों का चयन ये आकड़े यकीऩन वर्षो से आईएस की तैयारी कर रहे युवाओं को व्यथित कर सकते है, बहुत अधिक अवसादित भी। ये बात हमे समझनी होगी की प्रत्येक वर्ष कोई न कोई आईएस टाॅपर जरूर बनेगा और उसके साथ विभिन्न परिस्थितियाॅ और सफलता की अलग- अलग कहानियां अवश्य जुड़ी होगीं ।
पर अगर हम अपने दृष्टिकोण में जरा सा बदलाव लाये तो शीर्ष 20 टाॅपर्स के साथ 1058 नाम और भी है जिन्होंने इस परीक्षा में सफलता हासिल की है।इनमे से बहुत से लोग औसत छात्र रहे है ,बहुतों का ये अंतिम प्रयास था ,हालांकि ये विचार आना भी जायज है कि -‘‘ मैनें तो डीयू ,जेएनयू या आईआईटी में पढ़ाई नहीं की; मैं तो स्कूल-काॅलेेज में टाॅपर नहीं रहा, मेरे घर परिवार में कभी कोई आईएस अफसर नहीं बना ‘‘ यकिन मानिये इन बातो से कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारे पास भरत यादव ,गोविन्द जायसवाल ,रश्मि जगणे, के.जयगणेश, रुकमणी, निशांत जैन जैसे हजारों उदाहरण है जिनकी सफलता में उनकी पारिवारिक,शैक्षणिक या भाषाई पृष्ठभूमि कभी बाधक नहीं बन सकी ।
आज सबसे ज़्यादा हताश हिन्दी माध्यम के छात्र है, आकड़ो को देख कर ऐसा होना लाज़मी भी है, पर सच माने तो हम सबको भ्रमित किया जा रहा है, क्योकि कोई भी भाषा कभी भी सफलता में बाधक नहीं बन सकती और इस 5 प्रतिशत के जिम्मेदार हम हिन्दी माध्यम वाले खुद है, वर्षो से हमने हिन्दी लेखन शैली की उसी पुरानी पद्धति को अपनाया है ,जो समय के साथ कुछ हद तक दूषित सी हो गई है । जिसके कारण ‘‘रचनात्मक खोजी‘‘ यानी की यूपीएससी को हम आकर्षित नहीं कर पाते , उन पर अपनी छाप नहीं छोड़ पाते।
जैसा की मेरे गुरु हमेशा कहते है ’‘क्रांति करनी है तो कलम (लेखनी)में धार लानी होगी‘‘। अगर हिन्दी माध्मय वालो को यूपीएससी में अपने सफलता का ग्राफ बढ़ाना है,अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करना है तो निश्चय ही हिन्दी लेखन शैली में वैज्ञानिक पद्धति को अपनाना होगा और ‘‘हिन्दी माध्यम वाले सफल नहीं होते‘‘इस दुष्प्रचार को भी बंद करना होगा। वर्षो से इसी दुष्प्रचार के कारण ही आज हम 5 प्रतिशत पर आ गये,भ्रम और दुष्प्रचार का ये सिलसिला अगर यू ही चलता रहा तो कल को ये आंकड़े 2 प्रतिशत पर भी सीमित हो सकते है।इसलिए अपनी पारिवारिक, शैक्षणिक और भाषाई पृष्ठभूमि को कोसने और शीर्ष टाॅपर्स को देख कर व्यथित होने के बजाय लगन और ईमानदारी के साथ पढ़ाई को जारी रखना ही समझदारी है।
हो सकता है पहले प्रयास में सफलता न मिले, हो सकता है टाॅप 50 में जगह न मिले, पर ध्यान रहे सफल हुए 1058 अभ्यर्थियों से 789 अभ्यर्थी आईएस,आईपीएस और आईएफस के लिए नहीं बल्कि ग्रुप-ए और ग्रुप-बी राजपत्रित अधिकारी के तौर पर चुने गए है जो कि प्रशासनिक सेवा में समाज के कम प्रतिष्ठत पद नहीं है ।
कहने को तो ये बड़ी-बड़ी लच्छेदार बाते हो सकती है पर यकीन माने जब आपके पास कुछ नहीं होता, कुछ भी नहीं ; सिवाय अवसाद और कुंठा के,तब ये छोटी-छोेेटी बाते ही आपको हौसला देती है, आपको आत्मबल देती है, एक ऊर्जा प्रदान करती है जिससे आप लड़ सकते है ,खुद से, अपनी गलतियों से ,अपने डरावने अतीत से और यू ही शामिल हो सकते है किसी वर्ष देश की सबसे प्रतिष्ठित सूची में सबसे शानदार अफ़सर के रूप मे ;पर इन सबके लिए जरूरी है - ‘‘ द शो मस्ट गो आन ‘‘
---अम्बुज सिंह
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