तेरे जन्म पर न शंख बजे न तासे,न शोहर के मधुर बोल थे, न शहनाई,न ढोल ...आँशुओ का प्याला होठो पर सजाये,तुम्हेँ अपने सीने से लगाये ,डरी सहमी सी माँ थी ।शायद अभी दादी के ताने से,पति के रुठ जाने से ..एक बेटी के घर आने से ,वह खूब रोई हैँ ।
धीरे-धीरे वह गम को भुलाती गयी ,आँसुओ को बिस्तर पर सुलाती गयी ।
फिर एक दिन आँगन मेँ आयी खुँशीयो कि बहार थी,घर मेँ मुझे बना कर लायी नयी मेहमान थी।
आज पति के चेहरे पर खुशी कि झलक थी,दादी को भी अपने पोते को छुने कि अजब सी ललक थी।
दादा नोटो कि गड्डीयाँ उढा रहे थेँ । घर वाले प्रियजनो को मिठाईयाँ खिला रहे थेँ ।
तू छोटी थी,तूझे खुँशीयो को जताने का तरीका नहीँ था ,अभी तूने ठिक से बोलना भी सीखाँ नहीँ था ।
जब माँ रसोई मेँ रहती तू मुझमेँ हि खोई रहती,मुझे नहलाती,खाना खिलाती, लोरिया तो आती नहीँ कही से जोड़ी-तोड़ी कहानियाँ सुनाती ।
आज एक बार फिर घर मेँ शहनाई थी,तासे थे,न जाने इस बार लोग क्यो उदासे थे ।
माँ फिर से रो रही थी , तेरी यादे को दिल मेँ सजो रही थी ।
आज पिता के भी दंभ चूर हो गये,वे आँसूओ को गिराने को मजबूर हो गये।
आज तो दादी भी उदासी से काठ है, ।तेरी खुशीयो के लिए उसके आचल मे मन्ऩत कि गाँठ हैँ ।
आज बस मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट थी ,फिर भी दिल मेँ उठी करुणा की आहट थी ।
आज तुझे खोने का डर सता रहा था ,इसी डर को छुपाने को तेरे जोडे-तोडे गीत गुनगुना रहा था ।
"इसे विडंबना समझू या कालच्रक ? तेरे आने पर उदासी थी,
तेरे जाने पर भी उदासी है, इन दोनो उदासी मेँ किस्मत किस उदासी पर उदासी हैँ ।
"सालो बाद इन स्मृतियो को याद कर रहा हूँ ,
तेरी खुशीयोँ के लिए ईश्वर से फरियाद कर रहा हूँ।
किसी जन्म न छूटे इस कलाई से तेरे रेशम कि डोर ,
तेरे आसूओ को लोगो से जाने क्यू बया कर रहा हूँ ।।"
रक्षाबंधन के पावन पर्व पर ढेर सारा प्यार और बधाईयाँ ।
--- अम्बुज सिँह
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