आठ -दस लडको की टोली ..सबकी उम्र लगभग 12 से 14वर्ष ...फटे रंगे कपड़ो का ड्रेस कोड पहने ...उत्पात मचाते ...लोगो पर कीचड़ और रंगों के साथ गालीयो और अभद्रतावो की भी बरसात करते ....मुख पर रंगों का नकाब लगाये ये चोर थे .....अवसरवादी चोर ! अपनी दमित इच्छा को निकलने वाले चोर ! जिनकी असभ्य इच्छावो को इस सभ्य समाज ने कैद कर रखा था ... उत्पात मचाते इस झुण्ड की नज़र उस मोहल्ले के एक बूढ़े पर पड़ी ....हा बिलकुल बूढ़ा था ...लाठी के सहारे बड़ी मुस्किल से खड़ा था ..सफ़ेद धोती में ........ पर इन चोरो को जरा भी तरस नहीं आया ....सब टूट पड़े उसकी बची आबरू को लूटने को .... सब लूटते रहे पर वह मौन रहा .. कमजोर था ...पर इरादों से नहीं ....शांत था ....पर शायद गूंगा नहीं था ...दुखी था पर ..फिर भी चेहरे पर मुस्कुराहट थी ....घूमता यह हर जगह था पर न जाने आज इसके पाँव क्यों जकड़े थे .. ......होली बीत गई अब ये चोर सभ्य हो गए थे ....एकदम सभ्य .....अब नकाब हट गया था .....सब की एक पहचान थी ....सभ्यता ने उन असभ्य चोरो को अपने जेल में फिर से कैद कर लिया था .... सुबह अखबार में उस बूढ़े की फोटो छपी .शाम को समाचार में भी इस अपराध की निंदा की गई......पर चोर अज्ञात रहे .. कुछ चोरो ने इस खबर को देखा ....कुछ का पता नहीं .. ..एक चोर के जेहन ने हफ्तों ये अपराध घूमता रहा ...उसे अपनी गलती का ऐहसास हो गया था ,शर्मिंदा था .. बूढ़े से माफ़ी माँगना चाहता था ,प्रायश्चित करना चाहता था पर बूढ़ा अब बहरा हो चूका था ....कुछ नहीं सुनता था ...बस मुस्कुराते हुए देखता था ....अंततः उस चोर ने 10 होली तक सभ्यता के जेल में रहने का फैसला किया ...चेहरे पर बिना रंगों के नकाब के ..... जेल में चोर की यह 8वी होली है ...वो जिद्दी बूढ़ा आज भी जिंदा है ....यही घर के पास रहता है ....सफ़ेद धोती में ....पर धोती थोड़ी गन्दी हो गई है ..बेचार ! क्या करे उसकी धोती साल में एक बार ही धुली जाती है ...... 2 अक्टूबर को ... वो चोर आज भी बुड्ढ़े को आवाज़ देता है ....वो बूढ़ा उसकी पुकार कब सुनेगा कुछ पता नहीं ..............… हर होली की भाति इस होली भी यह बात उस चोर को याद आ गई सो ये सब लिख दिया ........ ---
-अम्बुज सिंह
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