Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आये पलटकर या पहलेपहल आता है

 

 

आये पलटकर या पहलेपहल आता है
हर पल से कोई पहलू निकल आता है

 

कल निकल गया तो क्या हुआ दोस्त
बाद आज के भी एक कल आता है

 

अलग बात है नज़र न आये मगर
संग हर मुश्किल के हल आता है

 

पाप-पुण्य सब जमा करते रहिये
मय सूद के लौटकर असल आता है

 

ये दिल भी बिलकुल दिन की तरह
डूबता है और फिर निकल आता है

 

क़लम चलती है उसी नक्श-ए-पा पर
ये ख़्याल जहाँ-जहाँ टहल आता है

 

लोग सुनाये बातें भले ही ‘अमित’ को
पर वो तो सुना कर ग़ज़ल आता है

 

 


अमित 'हर्ष'

 

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