Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मीठे-खट्टे, कभी तीखे दे गया

 

मीठे-खट्टे, कभी तीखे दे गया
एक इश्क़ कई ज़ायके दे गया

 

दौर-ए-ज़रूरत इतना तो हुआ
जो भी मिला मशवरे दे गया

 

चाहता था लौटाना वापस उसे
शख़्स वो जो तजरबे दे गया

 

दोस्त नातवाँ थे आज़माइश को
सो मुकद्दर दुश्मन पक्के दे गया

 

कहानी क्या किरदार भी नहीं
वक़्त कुछ ऐसे क़िस्से दे गया

 

बाद ‘अमित’ के ज़माने ने कहा
बुरा था पर शे’र अच्छे दे गया

 

 

Amit Harsh

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ