आह और अश्कों की बरकत हैं यहाँ
सूर्ख मौसम का पुरजोर शिरकत है यहाँ
मौत की मजलिस जमीं रहती हरदम
खौफनाक हरकतों का दहशत हरवक्त यहा
हम यकीनन जीने को जी लेते हैं दो टूक जिन्दगी
सड़कों पर पसरा तेल सा है पर रक्त यहाँ
पीठ पर जिन्दगी को लादे बंजारों सा काफिला
कदम-कदम पर खुदगर्जियों का रैला जबर्दस्त यहाँ
मौसमें गुलजार मयस्सर नहीं चमन को पल भर भी
दरिया-ए-दर्द क्या जाने ’सुमन’ जज्बा-ए-इज्जत यहाँ
अमरेन्द्र सुमन
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