Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बहक गए हैं यार वे तो, यौवन भी गदराई है

 

बहक गए हैं यार वे तो, यौवन भी गदराई है
ख्वाबों में लगता है जैसे परि संवर कर आई है

 

धीमी-धीमी उसकी आहट, और फिजां में तन्हाई है
केमल-कोमल गाल हैं उसके, आँखें शराबी पायी है

 

तन्हाई में छुपकर उसने, मेरा दिल बेहाल किया
बैठ सखियों संग बाबरी, सपनों का इजहार किया

 

नेकी उनकी भूल न जाउॅ ऐसी उनकी ख्वाईश है
उनके मांग सिंदूर से सजें हों, ऐसी ही फरमाईश है

 

 

अमरेन्द्र सुमन

 

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