बहक गए हैं यार वे तो, यौवन भी गदराई है
ख्वाबों में लगता है जैसे परि संवर कर आई है
धीमी-धीमी उसकी आहट, और फिजां में तन्हाई है
केमल-कोमल गाल हैं उसके, आँखें शराबी पायी है
तन्हाई में छुपकर उसने, मेरा दिल बेहाल किया
बैठ सखियों संग बाबरी, सपनों का इजहार किया
नेकी उनकी भूल न जाउॅ ऐसी उनकी ख्वाईश है
उनके मांग सिंदूर से सजें हों, ऐसी ही फरमाईश है
अमरेन्द्र सुमन
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY