Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बेटी

 

माँ की शिक्षा
पिता की दीक्षा
ससुराल एक परीक्षा

 

अक्खड़ लड़की
उसने न पकड़ी
ब्याह पूर्व गीली लकड़ी

 

मैके में मस्त
उसके सोलह बसंत
स्वप्न सजे अनंत

 

घूप - झाँव झेली
सखी - सहेली
संग - संग खेली

 

पूनम की एक रात
चैखट पर बारात
असह्य बज्राघात



विदाई के वक्त
शिथिल हुआ रक्त
जज्बात जब्त

 

पोटली में जान
अंजाम मुकाम
मन में ईशकाम

 

रोज चैपाई
लेकर जम्हाई
वर की माई



श्राप सुबहों-शाम
दहेज की माँग
पक गया कान

 

बदला घर का रंग
छिड़ा अस्थिर जंग
हुआ अंग-भंग

 

दुखद एहसास
हास - परिहास
देवर, ननद न सास

 

खाकर खेली होली
नींद की गोली
विरान अब खोली

 

अमरेन्द्र सुमन

 

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