Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इस दौर में............

 

    अमरेन्द्र सुमन

 

 

बाप बूढ़ा
जैसे आँगन के किसी कोने में पड़ा कूड़ा

 

माँ बूढ़ी
टूटी हुई, बिल्कुल बाँस की सीढ़ी

 

घर की ड्योढ़ी
बहन
शोषण अत्याचार-उत्पीड़न
नित्य कर रही सहन

 

भाई
घर का सम्मान
खो रहा पल-प्रतिपल, खुद की पहचान

 

बेटी
माँ की दो आँखें, दो हाथ
महसूस कर रही
इस दौर में स्वयं को अनाथ

 

बेटा
वंश की आसन्न प्रतिष्ठा, कुलदीपक
माँग रहा अल्पवयस्क में ही अपना हक

 

बहु
सास की कमर
ससूर के बुढ़ापे की लाठी
परिवर्तन को तत्पर प्राचीन परिपाटी

 

ननद
नाजुक, अतिसंवेदनशील स्वचालित गन
बदलने में हरवक्त माहिर फन

 

ननदोषी
परपोषी नहीं परजीवी
वसूल रहे ससुराल से ही लेवी



देवर
नया अंदाज, नये तेवर
पत्नी के चरित्र का कलेवर

 

जेठ
मूँछों पर शान
निरा बुद्धु, बिल्कुल ठेंठ

 

जेठानी
सबकी नानी
दुहराने में माहिर सिर्फ मैके की कहानी
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