Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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महज कुछ ही पलों के अन्तराल में.................

 

अमरेन्द्र सुमन

 

 

 

कितनी बदल जाती है दुनियाँ
बदल जाते हैं रिश्तों के जज्बात
महज कुछ ही पलों के अन्तराल में
अतीत बनकर रह जाता है वर्तमान

 

महज कुछ ही पलों के अन्तराल में............................
खुल जाती हैं जीवन की बुनियादी आँखें
कल्पनाएँ चूम लेती हैं आकाश की अनन्त उचाईयाँ
लरज जाता है सूरज संध्या के आगोश में विश्राम लेने

 

बन्द कर देती है चिड़ियों की टोली
हास-परिहास करना
बहेलिये से अप्रत्याशित मुलाकात के बाद
पेड़ों से बिछुड़ जाने के गम में पत्तियाँ सिहर उठती हैं
अपने जूड़े को खोल नदियाँ पकड़ लेती हैं राह समन्दर की

 

महज कुछ ही पलों के अन्तराल में............................
आत्मघाती हो जाते हैं अपनों के प्राकृतिक विश्वास
पहचान खो देती है खुद की मुस्कान
अप्रत्याशित रुपों में मिले लोगों की आत्मियता
संबंध बना लेती है अपनों से ज्यादा

 

तेज रफतार इस चलती-फिरती दुनियाँ में
सब कुछ संभव है कुछ ही पलों के अन्तराल में
एक और भूज-अंजार तबाह-बर्बाद हो सकते हैं
ले सकते हैं आन्ध्र-स्वराष्ट्र, के कपास उत्पादकों की तरह
अन्य स्थानों के किसान सामुहिक आत्महत्या का कड़ा निर्णय
अयोध्या बन सकती है दूसरी गाजापट्टी
महज कुछ ही पलों के अन्तराल में...........................

 

महज कुछ ही पलों के अन्तराल में
हस्तिनापुर की खुबसूरती समाधिस्थ हो जाती है
बच जाती है द्रौपदी नग्न होने के अभिशाप से
शातिर कृष्ण की कूटनीति पर
दुर्योघन व दुश्शासन बेदखल कर दिये जाते हैं अपनी बची उम्र से

 

 

महज कुछ ही पलों के अन्तराल में.............................
पुराने दिनों की अच्छी-बुरी घटनाएँ हो आती हैं स्मरण
निःशुल्क साँसों की मित्रता से
हिरोशिमा-नागासाकी कर लेते हैं संबंध-विच्छेद
दो जवांदिल मुहब्बतों की असामयिक मृत्यु पर
दुनियाँ मनाती है आरामदेह शोक

 

महज कुछ ही पलों के अन्तराल में
कमल की पंखुड़ियाँ भौरों को कर लेती हैं
अपने आगोश में कैद
करती हैं पूरी की पूरी रात उनसे संभोग की वार्ताऐं
मौत के मुँह में जाने के पल भर पहले
याद आती है जिन्दगी को अपनी अंतिम ईच्छा

 

आदमी का सरकश हो जाना
बादलों का कर्कश हो जाना
संध्या का खामोश सो जाना
महज कुछ ही पलों के अन्तराल में.............................
महज कुछ ही पलों के अन्तराल में.............................

 

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