पुराने सोंच के नवीनीकरण से अलग हटकर
लम्बे मातम के बीच की थकान से उबरकर
मोटर के पहिये बनते फिर रहे
आदम के उँचे सोंच वाले वंशज
शहस्त्राब्दी वर्ष की अनचिन्ही-अनदेखी दहलीज पर
बाकी की जिन्दगी से मिलने वाली संभावित खुशी का।
बीस खोपड़े मगज के सँकरे गलियारे से
अपने हिस्से के बीते समय की उपलब्धि से पछता रहे
उन्होनें महसूसा क्षयरोग के मचान पर खड़ा
अपने अन्दर के आदमी का पीड़ित चेहरा।
कम्प्यूटर के स्पूतनिक पर नंगे बदन सवार
न पछताने की उम्र तक वे करते रहे
धरती के होने के अर्थ से अज्ञात बलात्कार
वे पालते रहे कल्पनाओं के मर्तबान में भ्रम के रसायनिक व जैविक हथियार
जन्म लेती साँसों की गति के रास्ते बंद करने
खोखले अरमानों के चेचेन्या, दागिस्तान की खातिर।
अब जबकि नयी सदी का आशावादी सूरज
पुरानी व कमजोर खिड़की से झांकना बंद कर चुका है
उनकी आँखों से भद्दे कारनामों की जुनुनी किच्ची के हटने के आसार, दिलासा दे रही है कम यात्रा में उपलब्ध
बच्चों की हुड़दंग को पर्याप्त करने
--------------------------------
अमरेन्द्र सुमन
द्वाराः- डाँ अमर कुमार वर्मा
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY