Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सिरहाने रखी तस्वीर शक्ल बदलने लगी

 

सिरहाने रखी तस्वीर शक्ल बदलने लगी
मूर्त रुप लेने से पहले और वह पिघलने लगी

 

खुशबुओं का जखीरा आजु-बाजू पड़ा फिर भी
तन्हाई की एक शाम जिन्दगी को खलने लगी

 

फलक पर मेघ नहीं वेवजह बिस्तर गिला हुआ
आँसुओं की गंगा जब हमबिस्तर होने लगी

 

कुम्हलाया पुष्प जब काँटों ने ही दगा किया उससे
सुमन दोस्ती में ऐय्यारी अब मुकम्मल होने लगी

 

 

 

 

अमरेन्द्र सुमन

 

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