उनकी हॅसी, मेरी इज्जत की जगहंसाई हो गई
झूठ के बंग्ले में सच की पुरजोर सफाई हो गईै
फलक पर बस्तियाँ बसाने के अनगिनत ख्वाब थे संजोये
कि तभी जमीं पर चाँद की फर्जी अगुवाई हो गई
संधर्षों के उम्र की प्रतिफल से दोस्ती गहरी
’सुमन’संकीर्ण सोंच की बस्ती अब संघाई हो गई
अमरेन्द्र सुमन
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