बचपन से ही सुनता आया हूँ
वे होती हैं मक्कार, धूर्त, कपटी व कुसंस्कारों वाली
गाँव-समाज के लिये
दहशत का एक प्रतीक
लम्बे-बिखरे होते हैं उनके बाल
डरावनी व रहस्यमयी होती हैं आँखें
अपने-पराये से बिल्कुल अलग-थलग
अपने कुनबे के सहारे
वे जीती हैं खौफजदा दुनियाँ में पूरी उम्र
लोग कहते हैं
अमावश की रात
हुआ करती है उनकी सिद्धियों की अग्नि परीक्षा
अपने आकाओं को प्रसन्न करने की खातिर
वे चढ़ाती हैं बलि
बच्चों की, पुरुषों अथवा महिलाओं की
महुआसोल में
जिन दो अधेड़ संताल महिलाओं को
जिन्दा जला डाला गया
क्या वे डायन थीं ?
अमरेन्द्र सुमन
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