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जल संरक्षण की अनिवार्यता

 

विश्व जल दिवस: जल संरक्षण की अनिवार्यता

जल, जीवन का आधार है। इसके बिना जीवन की कल्पना भी असंभव है। धरती पर जितना भी जल उपलब्ध है, उसका मात्र 2.5% ही मीठा जल है, और उसमें से भी अधिकांश बर्फ के रूप में जमा हुआ है। ऐसे में विश्व जल दिवस हमें जल की महत्ता, इसकी कमी और संरक्षण की अनिवार्यता की याद दिलाने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1992 में ब्राजील के रियो डी जनेरियो में आयोजित पर्यावरण एवं विकास सम्मेलन में 22 मार्च को "विश्व जल दिवस" के रूप में मनाने का निर्णय लिया। 1993 से यह दिवस हर साल अलग-अलग विषयों पर आधारित होकर जल संरक्षण और प्रबंधन को लेकर जागरूकता फैलाने का कार्य कर रहा है।

आज दुनिया के कई हिस्से जल संकट से जूझ रहे हैं। भारत में भी कई क्षेत्र जल संकट की चपेट में हैं। जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक दोहन, प्रदूषण और अव्यवस्थित जल प्रबंधन जैसी समस्याएँ जल संकट को और गहरा कर रही हैं। रिपोर्टों के अनुसार, यदि जल का दुरुपयोग जारी रहा, तो आने वाले वर्षों में जल युद्ध की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

जल केवल पीने या घरेलू उपयोग के लिए ही नहीं, बल्कि कृषि, उद्योग और जैव विविधता के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। यदि हम अभी से जल संरक्षण के प्रति सचेत नहीं हुए, तो भविष्य में इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। जल की बर्बादी को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं—

पुनर्चक्रण और वर्षा जल संचयन: वर्षा जल को संचित करके भूजल स्तर को बढ़ाया जा सकता है।

जल दक्षता तकनीक का उपयोग: कृषि और उद्योगों में जल के दक्ष उपयोग के लिए नई तकनीकों को अपनाना चाहिए।

समुदाय आधारित जल संरक्षण: स्थानीय स्तर पर तालाब, कुएँ और झीलों का पुनर्जीवन किया जाना चाहिए।

जनजागरूकता: स्कूलों, कॉलेजों और समाज में जल संरक्षण को लेकर जागरूकता अभियान चलाना आवश्यक है।

जल के बिना जीवन संभव नहीं है। अतः हमें जल का मूल्य समझना होगा और इसे संरक्षित करने के लिए व्यक्तिगत, सामुदायिक और राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास करने होंगे। "बूँद-बूँद में जीवन है"—इस मूल मंत्र को आत्मसात कर ही हम जल संकट से उबर सकते हैं और भावी पीढ़ी के लिए एक बेहतर जल भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं। विश्व जल दिवस हमें यही संदेश देता है कि जल को बचाना, भविष्य को बचाना है।

©®अमरेश सिंह भदौरिया

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