Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आपको मैं अपनी जागीर समझ बैठा

 
आपको   मैं अपनी  जागीर समझ बैठा।
हाथ की रेखाओं में तक़दीर समझ बैठा।
खुद बन  सका हूँ  रांझा  ये नहीं जानता,
पर आपको मैं अपनी  हीर  समझ बैठा।

©अमरेश सिंह भदौरिया

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ