अन्तस् की पीड़ा लिख पाऊँ!
ऐसे शब्द.......कहाँ से लाऊँ!
जीवन की रुठी.....सरगम से
कैसे......मेघ मल्हार सुनाऊँ!
अहसासों की शुष्क जमी पर
कैसे सुरभित सुमन खिलाऊँ!
सरल नहीं हैं उत्तर.....जिनके
ऐसे प्रश्न.....मैं क्यों दोहराऊँ!
सारा खेल है किस्मत का जब
खुद को दोषी...क्यों ठहराऊँ!
©अमरेश सिंह भदौरिया
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY