चंद सपने और कुछ ख्वाहिशें हैं आसपास।
दूर ले जाती है मुझको आबो दाने की तलाश।
तन्हाई, चिंता, घुटन, बेबसी, मज़बूरियां,
बदलती हैं रोज़ अपने-अपने ढ़ंग से लिबास।
अमरेश सिंह भदौरिया
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चंद सपने और कुछ ख्वाहिशें हैं आसपास।
दूर ले जाती है मुझको आबो दाने की तलाश।
तन्हाई, चिंता, घुटन, बेबसी, मज़बूरियां,
बदलती हैं रोज़ अपने-अपने ढ़ंग से लिबास।
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