फूँकि-फूँकि पाँव धरी चली चपरे-चपरे।
नज़रि लागि जबसे बेटऊना के हमरे।
भिनसारेन मनाई रोजु भुंइया भवानी।
तुलसी मा चढ़ाई रोजु लोटिया भरि पानी।
मनउती बटवाई मुहल्ला मा सगरे।
नज़रि लागि जबसे बेटऊना के हमरे।
मुसकिल होइगा हमरे उनहुन का जीना।
छूटि गवा हमरो सब खाना औ पीना।
अइस समय आवा परेन गाढ़े सकरे।
नज़रि लागि जबसे बेटऊना के हमरे।
नीक-नीक रहा काल्हि तक हमरो लरिका।
न जानी कोहिके प्याट मा पइठि गईं हुलका।
राम करै पुरिखा वहिके हुवैं सब अँधरे।
नज़रि लागि जबसे बेटऊना के हमरे।
ट्वाला परोसिन सब दौरि-दौरि आवैं।
नानी के नइहर कै सब बिरथा सुनावैं।
ननदी कहैं भउजी जब गयेन अपने ससुरे।
नज़रि लागि जबसे बेटऊना के हमरे।
बाहेर न निकरी कबहूँ बेरिया कुबेरिया।
घरहिन मा राखी आपन लरिका गउधिरिया।
अँजुरी भरि मिरचा सुलगाई कोने-अतरे।
नज़रि लागि जबसे बेटऊना के हमरे।
अनचिन्ह मनई जो कबहूँ दरवाजे आवै।
जियरा मा हमरे डरु बहुतै सतावै।
अमरेश हम छुपाय लेई लरिका अपने अँचरे।
नज़रि लागि जबसे बेटऊना के हमरे।
©अमरेश सिंह भदौरिया
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