मुक्तक
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शाम ढलने लगी है चले आइये।
दर्दे दिल को न यूँ और तड़पाइये।
बिन तुम्हारे अधूरी-सी है जिंदगी,
समझदार हो खुद समझ जाइये।
©अमरेश सिंह भदौरिया
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