Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

शाम ढलने लगी है चले आइये

 

मुक्तक


Inbox
x




Amresh Singh 

Fri, Mar 20, 7:01 PM (11 hours ago)




to me 


शाम ढलने  लगी  है चले  आइये।
दर्दे दिल को न यूँ और तड़पाइये।
बिन तुम्हारे अधूरी-सी है  जिंदगी,
समझदार हो खुद  समझ जाइये।

©अमरेश सिंह भदौरिया


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ