【किशोरावस्था में जीवन संतुलन】
【 The life balance in adolescence 】
आज की स्वप्नदृष्टा युवा पीढ़ी के जीवन में भविष्य की योजनाओं को लेकर जो दबाव, कुंठा और नैराश्यता उसके मन मस्तिष्क घर कर गई है, उसी का परिणाम है कि आये दिन ख़बरों में जो दिखता है, समाचारों में जो सुनाई पड़ता है और अखबारों में जो घटनाएं छपती हैं उसे पढ़कर मन आहत हो जाता है। हमें ये सोचने के लिए विवश होना पड़ता है कि आखिर इसके लिए किसको उत्तरदायी ठहराया जाय? क्या उस अभिभावक को जिसने अपने जीवन में अपनी सुख-सुविधाओं से समझौता करके बच्चों के सपनों को पूरा करने का सफल परिश्रम किया? क्या आज के सभ्य-समाज की अन्तहीन वर्गसंघर्ष की अवधारणा इसके लिए उत्तरदायी है? या ये कहें कि आज की युवा पीढ़ी अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को लेकर वैचारिक स्तर पर संतुलन बनाए रखने में असफल सिद्ध हो रही है? अगर इन तीनों कारणों पर पूर्वाग्रह से मुक्त होकर विचार करें तो तीसरा कारण इन घटनाओं के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी सिद्ध होता है। किसी भी घटना का कारण सिद्ध करना जितना कठिन होता है, उसका निवारण उतना ही सरल हो जाता है। ऐसी स्थितियों हम अपनी युवा पीढ़ी को निराशा के गहन अँधकार में डूबने से कैसे बचाएं? इसके लिए कुछ समाधान नीचे दिए जा रहें हैं, जिनका संदर्भ गणित से ग्रहण किया गया है। गणित से इसलिए कहने का प्रयास किया गया है कि गणित की प्रमाणिकता और पूर्णता में सबसे कम आपत्तियाँ यहाँ तक की नहीं के बराबर हैं। ये आज की युवा पीढ़ी के जीवन में संतुलन लाने के लिए मददगार हो सकते हैं............!
● 【किशोरावस्था के जीवन संतुलन में गणित की भूमिका】
● 【The role of mathematics in the life balance of adolescence】
●गणित के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले इस महान गणितज्ञ पाइथागोरस का जन्म करीब 570 ईसा पूर्व में पूर्वी एजियन के एक यूनानी द्वीप सामोस में एक व्यापारी के घर में हुआ था। उनकी माँ पयिथिअस, एक घरेलू महिला थी, जबकि उनके पिता बिजनेसमैन थे। पाइथागोरस शुरु से ही अपने पिता के साथ बिजनेस टूर पर जाते रहते थे। पाइथागोरस के पिता का नाम मनेसार्चस था।
●इस प्रमेय के अनुसार, समकोण त्रिभुज में, कर्ण भुजा का वर्ग, आधार भुजा और लम्ब भुजा के वर्ग के योग के बराबर होता है।
●पाइथागोरस प्रमेय (या, बौधायन प्रमेय) यूक्लिडीय ज्यामिति में किसी समकोण त्रिभुज के तीनों भुजाओं के बीच एक सम्बन्ध बताने वाला प्रमेय है। इस प्रमेय को आमतौर पर एक समीकरण के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है।
जहाँ c समकोण त्रिभुज के कर्ण की लम्बाई है तथा a और b अन्य दो भुजाओं की लम्बाई है पाइथागोरस यूनान के गणितज्ञ थे। परम्परानुसार उन्हें ही इस प्रमेय की खोज का श्रेय दिया जाता है। हालांकि यह माना जाने लगा है कि इस प्रमेय की जानकारी उनसे पूर्व तिथि की है। भारत के प्राचीन ग्रंथ बौधायन शुल्बसूत्र में यह प्रमेय दिया हुआ है। काफी प्रमाण है कि बेबीलोन के गणितज्ञ भी इस सिद्धांत को जानते थे। इसे 'बौधायन-पाइथागोरस प्रमेय' भी कहते हैं।
●【प्राचीन सन्दर्भ】
●【Ancient references】
●शुल्ब सूत्र या शुल्बसूत्र संस्कृत के सूत्रग्रन्थ हैं जो स्रौत कर्मों से सम्बन्धित हैं। इनमें यज्ञ-वेदी की रचना से सम्बन्धित ज्यामितीय ज्ञान दिया हुआ है। संस्कृत के शुल्ब शब्द का अर्थ नापने की रस्सी या डोरी होता है। अपने नाम के अनुसार शुल्ब सूत्रों में यज्ञ-वेदियों को नापना, उनके लिए स्थान का चुनना तथा उनके निर्माण आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है। ये भारतीय ज्यामिति के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं।
●शुल्ब सूत्रों की सूची
●निम्नलिखित शुल्ब सूत्र इस समय उपलब्ध हैं.....
●आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र
●बौधायन शुल्ब सूत्र
●मानव शुल्ब सूत्र
●कात्यायन शुल्ब सूत्र
●मैत्रायणीय शुल्ब सूत्र (मानव शुल्ब सूत्र से कुछ सीमा तक समानता है)
●वाराह (पाण्डुलिपि रूप में)
●वधुल (पाण्डुलिपि रूप में)
●हिरण्यकेशिन (आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र से मिलता-जुलता)
#साभार स्रोत गूगल
उपरोक्त चर्चा अनावश्यक नहीं, ये हमारी युवा पीढ़ी के जीवन में आयी हुई समस्या के समाधान का आधारभूत हिस्सा है।
●【युवा पीढ़ी के जीवन में आए असंतुलन के घटक 】
●【Factors of imbalance in the life of young generation】
आज हमारी जीवन शैली का प्रारूप बदल गया है, तो इसके प्रभाव से हमारी युवा पीढ़ी भी नहीं बच पायी है। यह कहना गलत है कि हमें केवल वर्तमान में जीना पड़ता है। व्यक्ति को अतीत, वर्तमान और भविष्य के रूप में समय को समझना चाहिए। कुछ लोग अतीत से संचालन करते हैं। कुछ लोग भविष्य का सोचते हैं और इसलिए वह ज्यादातर भविष्य से संचालन करते हैं, और कुछ वर्तमान की ओर रूख करते हैं। समझदार बनने के लिए तीनों अवधि के बीच में संतुलन बैठाएं... जब ज़रूरत होती है आपको अतीत से संदर्भ लेना पड़ता है और भविष्य को ध्यान में रखना पड़ता है। इसलिए समय का संतुलन करना बहुत ज़रूरी है।
●【अतीत, वर्तमान और भविष्य के संतुलन का अनुपात】
●【Past, present and future balance ratio】
इसको समझने के लिए हम एक समकोण त्रिभुज का उदाहरण गणित से ले सकते हैं...
●समकोण त्रिभुज की परिभाषा : पाइथागोरस प्रमेय के अनुसार, समकोण त्रिभुज में, कर्ण भुजा का वर्ग, आधार भुजा और लम्ब भुजा के वर्ग के योग के बराबर होता है। जी हाँ ! पूर्णतः यही सूत्र हमारे जीवन पर भी लागू होता है। अतीत, वर्तमान और भविष्य के संतुलन का नाम ही हमारा जीवन है। हम जानते हैं कि जिस तरह समकोण त्रिभुज में तीन भुजाएं आधार, लम्ब और कर्ण होती हैं। ठीक उसी तरह हमारा जीवन भी इन्हीं तीन भुजाओं (अतीत, वर्तमान और भविष्य) वाले त्रिभुज का समन्वित रूप है। हमारा अतीत हमारे जीवन रूपी त्रिभुज का आधार है। आधार (अतीत) हम बदल नहीं सकते हैं। यहाँ से सिर्फ़ हम सबक (सीख) ले सकते हैं। समकोण त्रिभुज की दूसरी भुजा को लम्ब कहते हैं। हमारे जीवन रूपी त्रिभुज में लम्ब हमारा वर्तमान है। जीवन में वर्तमान का महत्व सही दिशा में की गई सक्रियता से है। यहाँ सबसे ज्यादा जरूरी हमें ये समझना होता है कि यह वर्तमान ही हमारे पास होता है। अतीत बीत चुका है, भविष्य अभी तक संभाव्य है। अब बात करते हैं त्रिभुज की तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण भुजा की जिसे हम कर्ण के रूप में जानते हैं, ये कर्ण ही हमारे जीवन रूपी त्रिभुज में भविष्य कहलाता है। जिस तरह त्रिभुज के तीनों अंतः कोणों में एक विशिष्ट सम्बंध होता है, ठीक वही सम्बंध हमारे जीवन ( अतीत, वर्तमान और भविष्य ) में अंर्तनिहित होता है। समकोण त्रिभुज का सौंदर्य तभी तक रहता है जब तक वह अपनी परिभाषा की शर्तों के मानक में रहता है। पूर्णतया यही सूत्र हमारे जीवन (अतीत, वर्तमान और भविष्य) में भी लागू होता है।
●【ये अनुपात विकृत कब होता है?】
●【When does this ratio get distorted?】
संस्कृत का बहुत प्रसिद्ध लघु सूत्र है "अति सर्वत्र वर्जयेत्" जिसका हिन्दी शब्दार्थ है कि "अति करने से हमेशा बचना चाहिए", अति का परिणाम हमेशा हानिकारक होता है। ये सूक्ति सटीक रूप से "उत्तराखंड त्रासदी" पर चरितार्थ होती है। जब हम या हमारी आज की युवा पीढ़ी अपने जीवन में अतीत, वर्तमान और भविष्य के अनुपात में संतुलन नही बिठा पाती है तो वही होता है जिसे हम प्रतिदिन ख़बरों में या समाचार पत्रों में पढ़ते हैं। आज विकसित होती डिजिटल सोच हमारी युवा पीढ़ी को जहाँ नए-नए आयामों से जोड़ रही है, जिसे अर्थशास्त्र की भाषा में विकास का मानक बताया जाता है, और अपनी पीठ थपथपाई जा रही है, यकीनन सही है, परन्तु इस उपलब्धि के पीछे का एक स्याह पहलू भी है जो शायद आज की चमक दमक में आसानी से नज़र नहीं आता। आज की युवा पीढ़ी के सोच का स्तर जहाँ एक तरफ बढ़ा है वहीं उसके मस्तिष्क में वैचारिक स्तर पर अस्थिरता भी आयी है। ये अस्थिरता ही कुंठा और नैराश्यता को बढ़ावा देने का काम कर रही है। गणित की भाषा में कहें तो हमारे जीवन रूपी त्रिभुज का संतुलन विकृत हो गया है।
आज की युवा पीढ़ी में धैर्य का अनुपात घटा है, वह वो सब कुछ बहुत जल्द पाना चाहती है जिसके लिए एक नियत समय निर्धारित है। सब कुछ जल्दी पाने की छटपटाहट उसे सोच के स्तर पर समय से पहले ही बड़ा कर रही है। ये समय से पहले मिला बड़प्पन जिसको उपलब्धि मानने की भूल की जाती है, यही हमारी युवा पीढ़ी के जीवन के असहज और असंतुलित होने का मूल कारण है। कभी-कभी वे माता पिता जो अपने जीवन में किसी कारण क्षेत्र विशेष में सफल नहीं हो पाए हैं, उस रिक्तता की भरपाई अपनी संतान की उस क्षेत्र विशेष में सफलता के रूप में पाना चाहते हैं। ये स्थिति बच्चे के कोमल मन पर एक दबाव उत्पन्न करने का कार्य करती है। इस स्थिति में रहकर बच्चे को अपने भावी जीवन के सपनों और माता-पिता की अपेक्षाओं के बीच संतुलन बनाना मुश्किल हो जाता है। बच्चा तय नहीं कर पाता है कि प्राथमिकता में अपने सपने रखे या माता-पिता अपेक्षाएँ। ये स्थिति बच्चे को कुंठाग्रस्त बना देती है, उसके वैचारिक स्तर पर पंगुता आ जाती है। यहाँ अतीत, वर्तमान और भविष्य का अनुपातिक संतुलन विकृत हो जाता है।
● 【समस्या का समाधान】
●【Problem solving】
समाज की प्रथम इकाई जिसे परिवार कहा जाता है वह कभी संयुक्त हुआ करता था जिसे हम परिधि कह सकते हैं। परिधि गोल होती है। गोलाई से कभी किसी को आघात नहीं पहुँचा। परिधि के केन्द्र में परिवार का मुखिया होता था जिसकी दृष्टि सभी पर समान रूप से रहती थी। हम ये गर्व से कह सकते हैं कि इसमें (संयुक्त परिवार में) चार पीढ़ियाँ एक साथ रह लेती थी। उस परिवेश में कभी किसी को अकेलापन नही कचोटता था। रिश्तों को पोषण मिलता था। कुंठा और तनाव के लिए स्थान नहीं था। संयुक्त परिवार में खुशियाँ बसती थी। बेसिक रिश्तों में मस्तिष्क का प्रयोग न के बराबर था। यहाँ शिक्षा और संस्कार दोनों मिलते थे। शिक्षा जहाँ आधुनिकता की ओर अग्रसर करती थी वहीं संस्कार हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखते थे। जीवन सहज गति से चलता था।
कहा जाता है समय की नज़र सबको लगती है। इसके प्रभाव से संयुक्त परिवार भी नहीं बच पाया। अति आधुनिकता के प्रभाव के आघात से ये सुंदर परिधि दरक गयी। सौंदर्यहीन हो गयी। इसका नया स्वरूप जो बना वह त्रिभुज कहलाया। त्रिभुज मारक होता है, नुकीला होता है। इसमें रिश्तों को पोषण नहीं मिलता, उल्टे रिश्ते लहूलुहान हो रहें हैं। त्रिभुज की तीनों भुजाएं पति, पत्नी और बच्चे कहलाये। किशोरावस्था में तनाव और कुंठा का मूल कारण परिवार का एकांकी होना है। समय रहते अगर त्रिभुज के नुकीलेपन को मोथरा नहीं किया गया तो कल्पना कीजिए भविष्य में यदि त्रिभुज दरकेगा तो इसका नया स्वरूप क्या होगा?
बात समस्या के मनोवैज्ञानिक पहलू पर हो रही है तो यहाँ ये बताना भी तर्कसंगत है कि सब कुछ हमारे वश में नहीं होता है। मेरा ये कहने का आशय पलायनवादी या निराशावादी होना नहीं है। अतीत से ली हुई सीख, वर्तमान का सार्थक शतप्रतिशत सदुपयोग, जिस पर स्थित होता है हमारा भविष्य। जिस तरह समकोण त्रिभुज के सौंदर्य के लिए परिभाषा के मानक की प्रासंगिकता अनिवार्य है ठीक उसी तरह हमारे जीवन में अतीत, वर्तमान और भविष्य का संतुलन होना चाहिए। इनमें से किसी को भी हम आवश्यकता से कम या अधिक महत्व नहीं दे सकते। यदि हम इसका अक्षरशः पालन करते हैं तो हमारा जीवनरूपी त्रिभुज कुंठारहित, निराशारहित और सुंदर बना रहेगा। ये सब हमारे परिश्रम और प्रयास के अंतर्गत है जो जीवनरूपी वृत्त के कुल क्षेत्रफल का आधा यानि 180°(समकोण त्रिभुज के तीनों अन्तःकोणों का योग) है, शेष जो बचता उसे प्रारब्ध (भाग्य) कह सकते हैं जिस पर हमारा कोई अधिकार नहीं होता है।
●"हमारा जीवन 360° की परिधि वाला पूर्ण वृत्त है, फिर इसमें अपूर्णता कहाँ, दुःख कहाँ? ये तो हमारी मानसिक अनुभूतियाँ हैं, जो हमें कुछ पल के लिए कुंठा का, दुःख का आभास करा देती हैं।"
©®अमरेश सिंह भदौरिया
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