Anand Murthy
बहुत सुधरे क्या खाक सुधरे ..
वक्त की तारीख में क्या हम आप सुधरे |
मौन हुए हैं जान के ,
खुद में खोए मान के |
नाकामियाँ सरताज हुई हैं ,
जिन्दगियाँ मोहताज हुई हैं |
कुछ तो अपनों से ही नाराज हुई हैं |
कल तो दिल्ली दहल गई थी |
बम्बई बम से सहमीं थी |
निज़ामी धड़कनें आज थमी हैं,
हर सूबे में यह काली रात ज़मी हैं|
बहुत सुधरे क्या खाक सुधरे..
पाप की तारीक में ,
क्या हम आप सुधरे........
तारीक- अन्धकार
LEAVE A REPLY