Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बहुत सुधरे क्या खाक सुधरे

 

 

Anand Murthy

 

बहुत सुधरे क्या खाक सुधरे ..
वक्त की तारीख में क्या हम आप सुधरे |
मौन हुए हैं जान के ,
खुद में खोए मान के |
नाकामियाँ सरताज हुई हैं ,
जिन्दगियाँ मोहताज हुई हैं |
कुछ तो अपनों से ही नाराज हुई हैं |

 कल तो दिल्ली दहल गई थी |
बम्बई बम से सहमीं थी |
निज़ामी धड़कनें आज थमी हैं,
हर सूबे में यह काली रात ज़मी हैं|
बहुत सुधरे क्या खाक सुधरे..
पाप की तारीक में ,
क्या हम आप सुधरे........

 

 

तारीक- अन्धकार

 

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