पंखुड़ी गुलाब की वो दरकिनार कर गई !
हार की लड़ी में हमें भी बेशुमार कर गई !
गिला ये नहीं कि वो इंकार कर गई !
चाहतों पर मेरी वो सवाल कर गई !
गुजरती रही दिल की गलियों में गोरी ,
गम की लोरी में गुमाकर,मुझे गालिब करार कर गई !
सालों से सहेजे स्वप्न को हलाल कर गई !
मेरे सपनों को तो होली का गुलाल कर गई !
अपनी चाहत से चाहत का शिकार कर गई !
हार की कड़ी में हमे भी बेशुमार कर गई !.
Anand Murthy
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