Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चाहतों पर वो मेरी सवाल कर गई ..

 

 

पंखुड़ी गुलाब की वो दरकिनार कर गई !
हार की लड़ी में हमें भी बेशुमार कर गई !

 

गिला ये नहीं कि वो इंकार कर गई !
चाहतों पर मेरी वो सवाल कर गई !

 

गुजरती रही दिल की गलियों में गोरी ,
गम की लोरी में गुमाकर,मुझे गालिब करार कर गई !

 

सालों से सहेजे स्वप्न को हलाल कर गई !
मेरे सपनों को तो होली का गुलाल कर गई !

 

अपनी चाहत से चाहत का शिकार कर गई !
हार की कड़ी में हमे भी बेशुमार कर गई !.

 

 

 

 

Anand Murthy

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