...दर्पण सारे दरक गए हैं !
धूमिल माया में लिपट गए हैं !
हम तो इतने अच्छे थे ,
दिल से कितने सच्चे थे !
पर उन टुकड़ों टुकड़ों में हम
सिमट गए हैं !
आनन्दमूर्ति
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धूमिल माया में लिपट गए हैं !
हम तो इतने अच्छे थे ,
दिल से कितने सच्चे थे !
पर उन टुकड़ों टुकड़ों में हम
सिमट गए हैं !
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