Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दर्पण सारे .................

 

...दर्पण सारे दरक गए हैं !
धूमिल माया में लिपट गए हैं !
हम तो इतने अच्छे थे ,
दिल से कितने सच्चे थे !
पर उन टुकड़ों टुकड़ों में हम
सिमट गए हैं !

 

 

आनन्दमूर्ति

 

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