Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दिल -ए-बागवाँ की ,इक कनार बन के आ जाओ

 

दिल -ए-बागवाँ की ,इक कनार बन के आ जाओ !
उजड़े इस चमन की ,इक बहार बन के आ जाओ !!

 

खामोश जहन की, इक पुकार बन के आ जाओ 1
बेकरार दिल की ,इक झंकार बन के आ जाओ !1

 

स्मृति के आयने में,ओझल सी हो रही हो तुम !
अन्तर्मन की धुन्ध मे ,झोके हजार बन के आ जाओ !!

 

उपवन की सुर्खिओं मे, बसन्ती बहार बन के आ जाओ !
उठ जाएगें विखरे हुये, वो सम्बल हमार बन के आ जाओ !!

 

सावनी सौगात मे, रुहानी इक फ़ुहार बन के आ जाओ !
मदमस्त झूम लूं मै, मौसम सदाबहार बन के आ जाओ !!

 

घुंघरु की धड़कन की तुम ,इक झंकार बन के आ जाओ !
बेचैन इस मन की, इक फ़ंकार बन के आ जाओ !!

 

सांसों की सांस तुम हो ,नूरों की नूर तुम हो !
इक पल को मै भी जी लूं,वो जरिया हमार बन के आ जाओ!!

 

गुलशन की तुम ,गुल -ए-बहार बन के आ जाओ!
दिल -ए-बागवाँ की ,इक कनार बन के आ जाओ ............................

 

 

Anand Murthy

 

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