Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दिन के ढलते ही माँ.......

 

 

दिन के ढलते ही माँ की इक फरियाद होती है
जल्दी घर आ जा तूँ तेरी अब याद होती है
खाने की ताजगी की भी कुछ मियाद होती है
तेरे बिन छप्पन भोग की हर चीज बेस्वाद होती है
देखो गॉव से बाबा न जाने कब से आए है
माटी में लिपटी अठखेलियों की ही याद होती है
धीर के रुखसार पे अब बेचैनियों का डेरा है..
मुन्तजिर आँखों में मिलन की मुराद होती है
दिन के ढलते ही माँ की इक फरियाद होती है
स्वप्निल इमारत की कुछ तो बुनियाद होती है

 

 

 

Anand Murthy

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