Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

हम आम हैं भई आम

 

हम आम हैं भई आम ,
हम तो आम हो गए |
आशिकी के चर्चे ,
सरेआम हो गए |
वक्त के दायरे में ,
कुछ इल्जाम हो गये |
चन्द खुशी में इक दो
यूँ ही जाम हो गए |

 

 

हम आम हैं भई आम ,
हम तो आम हो गए |
डूबकर मदहोशी में ,
कुछ ऐसे काम हो गए |
जगह जगह जिरह जिरह में,
मेरे नाम के पर्चे,
खुलेआम हो गए|
हम तो...............

 

 

 

Anand Murthy

 

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ