Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जर्रा जर्रा खिल जाता है..

 

 

जर्रा जर्रा खिल जाता है..,
जब होठों पर हिन्दी होती है !.
उरभाव प्रखर हो जाते हैं..,
जब रफ़्ता रफ़्ता बहती है !
आलोक कमल खिल जाता है !
चहु ओर जब हिन्दी होती है !
हर पल बहता राग जहाँ,
रूप भिन्न ले लेती है....!
कर्ण प्रिय बन जाती है ,
जब धीरे धीरे बहती है !
जर्रा जर्रा खिल जाता है !.
मृदुल उमन्गे खिल जाती है !
हृदय पटल मुस्का जाते हैं ,
जब वाणी से वाणी मिलती है !
सम्पर्क सफ़ल हो जाते हैं,
जब हिन्दी हिन्दी बन कर बहती है.......

 

 

Anand Murthy

 

 

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