Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कन्या भ्रूण.........................

 

पनाह देकर भी क्यो मुझको, जीवन दे नही पाई !
रखा जो कोख में तुमने ,वो पीड़ा मोह नही पाई !
सजा दी किस कर्म की ,जो दुनिया देख नही पाई 1
यह पापों का समन्दर है,लहरे छू हमे पाई...!
डूबना हर किसी को है, तैरना सीख नही पाई !

 

चाहत थी मेरे दिल मे ,कि एक बचपन सजाना है 1
खुदा-ए-बेरूखी तेरी ,या उनका कर्म सताना है 1
उगने का शौक बीजों सा ,इक किस्सा पुराना है !
कोंपल कूककर कह्तीं, हमकों क्यूँ फ़साना है !
दुनिया दर्द नही देखी , हमकों यू ही रूलाना है !

 

महज चाह न थी उनकी ,नसीं बचपन नही हमको 1
जमाना पूजता पत्थर , न पायल पाँव पाने को !
झन्कार फ़ीकी है ,वो इक तान सुनाने को .....!
सूना आँचल भी रोया होगा,मेरा स्पर्श पाने को !
क्या ममता मायूस होगी ,सिर्फ़ मातृत्व लुटाने को !

 

फ़ेकी मै ग्ई जैसे ,सूखी इक लता हूँ मैं !
व्यथा तो इस तरह की है,कोढ़ का घाव हूँ मैं 1
दरख्तों को सजाकर भी,उनकी ही व्यथा हूँ मैं 1
आसमाँ है मेरे दिल में ,जमीं से दूर भी हूँ मै 1

 

रचाई क्यों ऋचाएं वो ,जिन्हे पूरा न होना है !
कली मै वहीं हूँ जिसे ,कुसुम नाम न पाना है !
मै उनकी ही खिलोना थी,जिनकी आस खिलो न है 1
सजाया क्यो गया खाका,जिसे माटी ही होना है !

 

नही जानती तू वेवश मन की...........
ख्वावों का महल सजाया होगा !
सपनो का साज जूटाया होगा ....
क्यों खामोश रही माँ तेरी ममता ....
कुछ तो तेरे मन मे आया होगा.....!......................

 


......................................................................आनन्दमूर्ति

 

 

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