तशब्बुर- ए-गुमान ने, एक शोहरत अदा कर दी हमें !
हर बार की तरह इस बार भी,इक हसरत अदा कर दी हमें!
शौक भी बच्चों के ,कब से सिमटते ही रह गये !
महगाई तो महगाई है,पर हम सिसकते ही रह गए !
आजमाइश की तकलीफ़ मे,हम तड़पते ही रह गये !
एक जख्म की खातिर ,हम मरहम मे लिपटते ही रह गये !
चर्चे तो सन्सद में , हर शाम होते हैं !
गुफ़्तगू की छांव में , मलहमी पैगाम होते हैं !
तालियां तो तोतली ,बार बार होती हैं !
रहनुमाई बोलती ,जब नागवार होती हैं !
Anand Murthy
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