Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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महगाई

 

तशब्बुर- ए-गुमान ने, एक शोहरत अदा कर दी हमें !
हर बार की तरह इस बार भी,इक हसरत अदा कर दी हमें!

 

शौक भी बच्चों के ,कब से सिमटते ही रह गये !
महगाई तो महगाई है,पर हम सिसकते ही रह गए !

 

आजमाइश की तकलीफ़ मे,हम तड़पते ही रह गये !
एक जख्म की खातिर ,हम मरहम मे लिपटते ही रह गये !

 

चर्चे तो सन्सद में , हर शाम होते हैं !
गुफ़्तगू की छांव में , मलहमी पैगाम होते हैं !

 

तालियां तो तोतली ,बार बार होती हैं !
रहनुमाई बोलती ,जब नागवार होती हैं !

 

 

Anand Murthy

 

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