Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

शेर

 

 

  • टक टकी लगाके जिसने भी देखा उसको लैला समझ बैठा हूँ मैं
    वो राधिका है....प्राण प्यारी और खुद को छैला समझ बैठा हूँ मैं
    अब तलक तो फूल से ही पत्थरों सी ठोकरें लगती रहीं हैं दोस्तों
    अब जिन्दगी के ताश में....हर नहले को दहला समझ बैठा हूँ मैं

     

  • दुपट्टा मान के जब धूप को बड़े' शान से निकले
    कोई खाली रहे थाली न इस अरमान से निकले
    करेगी क्या चढ़े बैशाख और' आषाढ़ की गरमी
    किसानों के सभी बेटे तो' सीना तान के निकले

     

  • बड़ी जुस्तजू है..वही गुफ्तगू हो
    तेरे शहर से हम कभी रूबरू हों
    बदल न सके कोई चाहत मेरी
    चाहे तेरे शहर में कई हूबहू हों
    .........................................

     

  • है मनुहार प्रिये तुम .... .थोड़ा सा इकरार करो
    छोड़ उदासी चंचलता का..... ...तुम श्रृंगार करो
    हो समेकिक प्यार अगर प्यार नहीं वो लगता है
    थोड़ी सी तकरार कभी तो थोड़ा थोड़ा प्यार करो

     

  • नव वर्ष की मंगल शुभकामनाएं और दिली मुबारकबाद...
    यादों का इक जखीरा यह साल दे गया
    बेहतर जनाब हीरा...यह साल दे गया
    संभलती रही जिन्दगी चलना भी और है
    खुशियों का इक मंजीरा यह साल दे गया

     

  • कोई इस नाचीज़ को ही चीज़ कह गया
    खद्दर के दुशाले को कमीज़ कह गया
    आज तअज़्ज़ुब हो गया इस कदर आनन्द
    इक अजनबी आके ह्मे अज़ीज़ कह गया

     

  • चलो फिर से दिवाली का इक जश्न मनाना है
    गिले शिकवे के तिमिर से मुक्त मन बनाना है
    अमावस की निशा में तो हर ज्योति निराली है
    भव्य दीपामालाओं से अपना गुलशन सजाना है

     

  • आज फिर किसी का दीदार हो रहा था..
    ये बंदा भी कुछ समझदार हो रहा था
    मैं कुछ हैरत में पड़ गया यारो..कौन सा
    नुस्खा इस मौसम असरदार हो रहा था

     

  • मुस्कराकर जब उन्होंने दी गालियां.
    गुलाब की तरह खिल उठी गालियां
    अँखियों में समाई हैं जब वादियां
    शराब से कहीं नशीली हुई गालियां...

     

  • es tarah sb parv manate rhe....
    soch badli nhi..aur satate rhe...
    saamne kuchh kahe..bs rulate rhe
    kabhi devi kahe..kabhi durga kahe..
    pr roj kisse vhi..aate jaate rhe..

     

  • माना कि ख्वाब तेरे, उस महताब से तो कुछ कम नहीं हैं...
    दस्तक देकर देख जरा,तेरे अहबाब तो हम होके रहेंगे........

     

  • श्रृंगार को वो हथियार बना के चल दिए ...
    अंगार को वो यार बना के चल दिए...
    छिपा के असली पहचान अपनी...
    दिल के दरवाजे पर एक प्रहार कर के चल दिए .......

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ