Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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विविध

 
  • सात समन्दर पार तक, नत स्नेहिल संसार।
    नये कलेवर में मिला,फ़िर से मां का प्यार।।
    आनन्द में आनन्द मिले, बने नए विधान ।
    क्लेश क्लेश में आ गये, मिट रहे व्यवधान ।।

 

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