मेरी कविता मेरे बोल
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| Sat, Feb 29, 7:44 PM (19 hours ago) |
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'हाँ, डर लगता है'
डर लगता है साहब !
दुनिया की सच्चाई से
अक्सर डर जाता हूँ
हर चेहरे के पीछे
छिपी हुई बुराई से
डर लगता है साहब !
दुनिया की सच्चाई से
अक्सर अँधेरे घेरों में
लुट जाने का डर होता है
किसी काली परछाई से
हाँ, डर लगता है साहब !
खुशियों के छीन जाने का
दुख के आने
और सुख के जाने का
अक्सर डर लगता है
सपनों के खो जाने से
आँसू के बह जाने का
किसी अपने के धोके से
परदा उठ जाने का
अक्सर डर लगता है
किसी अपने को खोने से
इस स्वार्थ की दुनिया में
भीड़ में भी तन्हा होने का
हाँ, डर लगता है साहब !
इस दुनिया की सच्चाई से
अक्सर डर जाता हूँ
लोगों के अन्दर की बुराई से..।
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