‘रहस्य’
क्या ? करोगे जानकर
कि रहस्य छिपा है हर सोपान पर
क्या-क्या खोज निकालोगे ?
इस धरती के चाँद पर
कितनी दूर छलाँग लगाओगे ?
इस असीमित ब्रह्माण्ड़ पर
किन रहस्यों को खोजना हैं ?
अपने से बाहर
उस आसमान पर
ये रहस्य तो कब से खड़े हैं
जीवन से पहले ही
ये अन्तरिक्ष में भरे पड़े हैं
इनको सुलझाकर
क्या हांसिल कर पाओगे ?
पहले मन के अन्दर तो टटोलो
अनगिनत रहस्य
अपने मन के अन्दर ही
तुम उलझे हूए पाओगे
और अगर सुलझाना है कुछ तो
पहले अपने मन को सुलझा लो
वरना ये रहस्य तो
कल भी थे इस आसमान में
कल और खड़े हो जायेंगे
इनको सुलझा भी लेंगे लेकिन
अन्तर्मन से तो कल भी उलझे थे
और कल फिर उलझे रह जायेंगे…।
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