Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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'घुटन'

 

'घुटन'
हँसते मुस्कुराते हूए
ज़िन्दगी का एक दौर गुजर गया
उम्र फिसलती रही
केवल घुटन का शोर रह गया
वक्त बहता रहा
नदी से समन्दर की ओर
रास्ते बदलते हूए
लेकिन मन का सुकून कहीं खो गया
अब कुछ पल बैठे हूए
हालातों पर गोर करते है
बीते हूए क्षणों पर इस पल
मन की घुटन का तोल करते है
और ज्ञात होता है अभी
कुछ खोने का, कुछ पाने का
ज़िन्दगी भर का सफ़र
एक घुटन की कहानी थी
जिसे लिखा भी हमने था
और भोग भी हम रहे थे।


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