मेरी कविता, मेरे बोल
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| Fri, Jan 31, 6:37 PM (11 hours ago) |
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'मजबूर माँ'
भूख से बिलखते बच्चे को
गोद में लेकर माँ सहला रही थी
था नहीं खाने को
बस बातों से
बच्चे को बहला रही थी
झूठ था मगर
झूठा दिलासा देने को
पिता के आने
और संग खाना लाने की बात
बार-बार दोहरा रही थी
एकीनन मजदूर थी
पेट था खाली
और खुद के बच्चे को
भूखा रखने को मजबूर थी
था नहीं कुछ खाने को
तरस रहा था घर दाने दाने को
इसीलिए मजबूर थी
एक माँ
अपने बच्चे को भूखा सुलाने को।
अनिल कुमार कैंसर, वरिष्ठ अध्यापक 'हिन्दी'
ग्राम व पोस्ट देई, तहसील नैनवाँ, जिला बून्दी, राजस्थान
उक्त रचना मेरे द्वारा रचित मेरे स्वयं के विचार है, इसमें यदि किसी को आपत्ति होती है, तो इसका मैं स्वयं जिम्मेदार रहूँगा।
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