Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शब्दों का घाव

 

 'शब्दों का घाव'

प्यार से उठाया होता हाथ

तो हम गाल आगे कर देते

पर शब्दों की मार ने

कुछ ऐसा वार किया

 हाथ उठा हथियार चला

फिर भी घावों से

सीना गुलजार कर दिया

मिले तो हम हर रोज

बात भी कुछ हँसकर हुई

पर बातों में

पहले जैसी बात नहीं रही

बेफिजूल के झगड़े ने

मेरा भी मन भर दिया

और सामने वाला भी

बरसों के रिश्ते को

एक पल में 

तार-तार कर गया.....

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