Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

वसीयत

 

वसीयत———-बहुत कुछ नहीं है मेरे पास थोड़ा बहुत जो भी है वह क़ीमती है किसको क्या मिलेगा कह नहीं सकता लेकिन जो चीज़ भी तुम्हारे जीवन को उज्जवल बनाये वो ले लेना मेरे स्नेह को वही पा सकेगा जो उसे हृदय तक महसूस करने की क़ाबलियत रखता हो ज़रूरी नहीं कि वह मेरे लहू के रिश्ते में बँधा हो ये वसीयत मेरे जज़्बात मेरे तजुर्बों की है ये वसीयत मेरे पसीने की गंध व मेहनत की मिट्टी में उपजे फूलों की है जो महक रहे हैं यत्र तत्र बगीचों में ये वसीयत मेरे जीवन में मुझसे हुई भूलों की हैवह भूलें जो आज मुझे यह वसीयत लिखने के लिये प्रेरित कर रही हैं तुम चुन सकते हो सीख ले सकते हो मेरी असफलताओ से जो सम्भवत: तुम्हें सफलता का गुर दे सकें                           अनिल कुमार शर्मा


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ