देके अपनी बुराई ओ मालिक, तुमसे आये है लेने भलाई !
वैसी दुनियां बनायेंगे अब हम, दुनियां जैसी थी तुमने बनाई !!
यह ना सोचा की परिवार इक हैं, हमने जाति धर्म में है बांटा !
तोड़े पर्बत, नदी धार रोकी, जंगलो को भी हमने था काटा !
अपने अपनों से बेवक्त बिछड़े, बात तब यह समझ में है आई !!
वैसी दुनियां बनायेंगे******
तन बड़ा हो मगर बाल मन हो, जिसमें कोई कपट हो ना छल हो !
सुख सम्रद्धि सभी को बराबर, धारा शान्ति की बहती अविरल हो !
पाप अज्ञान से हो गये है, प्रभु करते छमा की दुहाई !!
वैसी दुनियां बनायेंगे******
सब के कल्याण पथ पर चलें हम, ऐसी शक्ति हमें देना मौला !
प्रेम की रौशनी ऐसी देना, सच से जाग्रत रहे मन सलोना !
पथ से भटकें कभी ना ओ दाता, राह तुमने है जो यह जताई !!
वैसी दुनियां बनायेंगे******
*******”अनिल रंजन”
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