जब कोई फूल मुस्कुराया है।
उसकी यादों ने दिल दुखाया है।
ज़िंदगी का है ये सफ़र कैसा ,
राह में धूप है न साया है।
मुद्दतों हमने रौशनी के लिए ,
शाम होते ही दिल जलाया है।
फिर मिलेगा हमें फ़रेब कोई ,
फिर चिराग़े वफ़ा जलाया है।
हमने खुशबू नगर में ऐ लोगों ,
अपने ख़्वाबों का घर बनाया है।
फूल खिलने लगें हैं शाखों पर ,
वो यक़ीनन ही मुस्कुराया है।
ये अजब शहर है यहाँ लोगों ,
कोई अपना है ना पराया है।
हम अकेले नहीं हैं राहों में ,
एक हम हैं , हमारा साया है।
फिर यक़ीनन ग़ज़ल जनम लेगी ,
फिर " अनिल " ने कलम उठाया है।
अनिल रस्तोगी
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