Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आपकी मुहब्बतों के हवाले ……

 

जब कोई फूल मुस्कुराया है।
उसकी यादों ने दिल दुखाया है।

 

ज़िंदगी का है ये सफ़र कैसा ,
राह में धूप है न साया है।

 

मुद्दतों हमने रौशनी के लिए ,
शाम होते ही दिल जलाया है।

 

फिर मिलेगा हमें फ़रेब कोई ,
फिर चिराग़े वफ़ा जलाया है।

 

हमने खुशबू नगर में ऐ लोगों ,
अपने ख़्वाबों का घर बनाया है।

 

फूल खिलने लगें हैं शाखों पर ,
वो यक़ीनन ही मुस्कुराया है।

 

ये अजब शहर है यहाँ लोगों ,
कोई अपना है ना पराया है।

 

हम अकेले नहीं हैं राहों में ,
एक हम हैं , हमारा साया है।

 

फिर यक़ीनन ग़ज़ल जनम लेगी ,
फिर " अनिल " ने कलम उठाया है।

 

 

अनिल रस्तोगी

 

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