Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जब भी कानों में रस घोलते शब्द हैं।

 

 

जब भी कानों में रस घोलते शब्द हैं।
द्वार दिल के सदा खोलते शब्द हैं।

 

छंद ,मुक्तक ,ग़ज़ल , गीत चुप हैं मगर ,
मेरी रचनाओं में बोलते शब्द हैं।

 

इश्क़ कि रुत में चलती है जब भी हवा ,
तितलियों की तरह डोलते शब्द हैं।

 

रोज़ भाषाओँ कि रेत से देर तक ,
शेर कहने को हम रोलते शब्द हैं।

 

कुछ भी कहने से पहले लबों पर "अनिल ",
अपनी आदत है हम तोलते शब्द हैं।

 

 

 

ANIL RASTOGI

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