जब भी कानों में रस घोलते शब्द हैं।
द्वार दिल के सदा खोलते शब्द हैं।
छंद ,मुक्तक ,ग़ज़ल , गीत चुप हैं मगर ,
मेरी रचनाओं में बोलते शब्द हैं।
इश्क़ कि रुत में चलती है जब भी हवा ,
तितलियों की तरह डोलते शब्द हैं।
रोज़ भाषाओँ कि रेत से देर तक ,
शेर कहने को हम रोलते शब्द हैं।
कुछ भी कहने से पहले लबों पर "अनिल ",
अपनी आदत है हम तोलते शब्द हैं।
ANIL RASTOGI
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